जैसा कि सर्वविदित है, उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में मसूरी रेंज के बन्दरपूंछ चोटी के निकट यमुनोत्री ग्लेशियर से निकलने वाली यमुना नदी,उत्तराखंड से निकलकर हिमांचल प्रदेश,हरियाणा व दिल्ली होते हुए उत्तर प्रदेश के वृन्दावन,मथुरा,आगरा होते हुए प्रयागराज में गंगा नदी में मिल जाती है I इसकी लम्बाई लगभग 1376 कि०मी० है I लखवाड़-व्यास बांध,उत्तराखंड व ताजेवाला बैराज हरियाणा में दो बांध इस नदी पर बने हैं I अनेकों शोध और रिपोर्ट्स में यह प्रमाणित हो चुका है कि यमुना नदी अपने पुरे सफ़र में सबसे ज्यादा दिल्ली मंन प्रदूषित होती है, उसके बाद मथुरा व आगरा में भी यमुना नदी में प्रदूषण बढ़ जाता है I
आज सम्पूर्ण विश्व में पर्यावरण संरक्षण एवं जल संरक्षण पर चर्चा हो रही है, इसके लिए सरकारें व पर्यावरणविद भी चिंतित हैं I पृथ्वी में लगातार भूजल समाप्त हो रहा है I देश के कई भाग भूजल विहीन हो गए हैं, ऐसे में हमारी जीवन दायिनी नदियों के संरक्षण व उन्हें जीवित रखना सम्पूर्ण मानवता के लिए अत्यंत आवश्यक है I इस प्रस्ताव में हम विशेष रूप से उत्तर भारत की प्रमुख “यमुना नदी” का उल्लेख करना चाहते हैं I अपने आपमें धार्मिक और पौराणिक महत्व रखने वाली, करोड़ों लोगों की आस्था के केंद्र यमुना नदी देश की राजधानी दिल्ली की लाइफ लाइन कही जा सकती है I इसके किनारे बसे हरियाणा और उत्तर प्रदेश के प्रमुख शहर फरीदाबाद, वृन्दावन, मथुरा, आगरा व प्रयागराज सहित इसके आसपास बसे हजारों गावों में निवास कर रहे लोगों के जीवन को सिंचित करती यह नदी, आज प्रदूषण और नजरंदाजी की वजह से अत्यंत दयनीय स्थिति में है I यह सर्व विदित है कि यमुना नदी अत्यंत प्रदूषित और जल की कमी में आज भी अपने प्रवाह में है I इस नदी को हम अपनी संकल्प शक्ति, सरकारी सहयोग व सार्वजानिक सहभाग से पुनः अपने मूल स्वरुप में ला सकते हैं I
हमने इसको उत्तर प्रदेश के वृन्दावन से मथुरा के मध्य व बहुत हद तक आगरा तक भी हमारा प्रयास जारी है, हमने दुनियां के समक्ष एक सफल उदाहरण प्रस्तुत करके दिखाया है I जिसे प्रत्यक्ष रूप से देश-विदेश के बहुत प्रबुद्ध गणमान्यों द्वारा अवलोकन किया गया है I बिना किसी सरकारी व कार्पोरेट सहयोग के हमने सम्बंधित शहर अथवा बसावटों से आने वाले नालों को यमुना में गिरने से पूर्व ही एक अलग से कैनाल बनाकर उसमें दूषित जल को समाहित करने का सफलतम प्रयोग किया है, इन नालों के माध्यम से शहर का प्रदूषित जल,व कचरा नदी में जाने से नदी को बचाना तथा उसी कचरे नाले के तटों पर मार्ग के रूप विकसित करना, मार्ग के दोनों और वृहत वृक्षारोपण कर प्रकृति सम्वत वातावरण का निर्माण करना, तटों पर पार्कों का निर्माण करना, प्रकृति अनुरूप वृक्षों व फलदार वृक्षों के उपवन तैयार करना और इसी दूषित जल से उनकी नियमित सिंचाई भी करना I कचरे के समुचित निस्तारण के लिए उसे, यमुना नदी व नालों से निकले सिल्ट के नीचे दबाकर एक बहुपयोगी उपवन व बड़े-बड़े तालावों का सफलतम
निर्माण करना, यह प्रत्यक्ष करके दिखाने का कार्य यमुना मिशन द्वारा किया गया है I जिसका अवलोकन कभी भी किया जा सकता है I आज मथुरा और वृन्दावन के मध्य अनेक घाटों का पुनुरुद्दर कर श्रद्धालुओं द्वारा नित्यप्रति यमुना आरती के विकसित कर दिया गया है I जिसके कारण असंख्य लोग आज यमुना नदी को स्वच्छ और निर्मल करने की मुहिम में जुड़ रहे हैं I
यमुना नदी में प्रदूषण के प्रमुख कारण:-
क) यमुना नदी में, हरियाणा के सोनीपत जिले में संचालित विभिन्न औद्योगिक इकाइयों में उपयोग होने वाला अमोनिया,उर्वरक,प्लास्टिक और रंजक के प्रयोग से इसका कचरा यमुना नदी में प्रवाहित कर दिया जाता है I
ख) यमुना नदी में सीवेज,औद्योगिक कचरे को मिला दिए जाने से यमुना का जल प्रदूषित होता है I
ग) विभिन्न उद्ध्योगों से निकलने वाले अमोनिया के यमुना जल में मिश्रण के कारण, यमुना जल में घुलित आक्सीजन की मात्र कम हो गई है I यह नाइट्रोजन के ऑक्सीकृत रूपों को बदल देती है, परिणामतः यह बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड को भी बदल देती है I
घ) यमुना नदी में बढ़ते प्रदूषण के कारण नदी के घाटों पर अनगिनत मछलियाँ व कछुए मर जाते हैं, जीवों के मार जाने से भी नदी के जल में घुलनशील ऑक्सीजन की मात्रा में कमी आ गई है I
ङ) यमुना नदी में प्रदूषण का प्रमुख कारण, मथुरा में संचालित रिफाइनरी से निकलने वाला पेट्रोलियम वेस्ट हाईड्रोकार्बन(तैलीय पदार्थ) यमुना नदी के जल पर एक तैलीय परत चढ़ा देता है, अतः इस जल के प्रयोग करने वाले लोगों व जीवों को भारी नुकसान होता है I
च) यमुना नदी में प्रदूषण फ़ैलाने का प्रमुख कारण दिल्ली शहर को माना जाता है I दिल्ली में यमुना के तट पर लगभग 65,000 झुग्गियों में रहने वाले 3 से 4 लाख लोग, व पूरी दिल्ली के सीवेज का गन्दा पानी यमुना नदी में प्रवाहित कर दिया जाता है I लगभग 600 टन कचरा,प्लास्टिक की थैलियाँ एवं घरेलू गन्दगी यमुना नदी में प्रवाहित कर दी जाती है I
एक शोध में प्राप्त जानकारी इस प्रकार है :-
क) जीवनदायिनी यमुना की वर्तमान हालत के लिए दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश तीनों राज्य जिम्मेवार हैं। यमुना के किनारे स्थित इन राज्यों के शहरों की औद्योगिक इकाइयों का कचरा लगातार यमुना में गिर रहा है। यमुना में गिर रहे औद्योगिक इकाइयों के कचरे को लेकर सेंट्रल पॉल्यूशन कांट्रोल बोर्ड द्वारा भी समय-समय पर चिंता जाहिर की जाती रही है। यमुना के प्रदूषण को लेकर जुटायी गई जानकारियों में पांच महत्वपूर्ण कारण सामने आये हैं। इन वजहों को दूर कर दिया जाये तो यमुना प्रदूषणमुक्त हो जायेगी।
ख) दिल्ली की लगभग 1535 अनधिकृत कॉलोनियों ने निकलने वाला सीवेज कचरा बगैर शोधित किये सीधे यमुना में डाला जा रहा है, जिसके जरिए दिल्ली में यमुना का पानी बिल्कुल काला हो गया है। इसके अलावा कुछ औद्योगिक इकाइयों का वेस्ट कचरा भी नदी में डाला जा रहा है। खास बात यह है कि दिल्ली जल बोर्ड दिल्ली में लगभग 830 एमजीडी (मिलियन गैलन प्रतिदिन) पानी की आपूर्ति का दावा करता है, लेकिन इसके विपरीत महज 330 एमजीडी गंदा पानी ही शोधित कर पाता है। शेष पानी बगैर शोधन के ही नदी में डाला दिया जाता है।
ग) यहां पर लगभग 16 हजार रजिस्टर्ड औद्योगिक इकाइयां और इससे ज्यादा बगैर पंजीकृत औद्योगिक इकाइयां संचालित हो रही हैं। यहां पर लगाए गए सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट पूरी तरह से कारगर नहीं हैं। यहां पर बड़े पैमाने में डाई यूनिटें और केमिकल फैक्ट्रियां हैं। औद्योगिक इकाइयों का वेस्ट कचरा बड़े पैमाने पर नदी में डाला जा रहा है।
घ) इन दोनों शहरों में स्थित औद्योगिक इकाइयों से उत्पन्न होने वाले कचरे का काफी हिस्सा बगैर शोधित किए नदी में डाला जा रहा है। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा वर्ष 2013 में किए गए सर्वे में भी यह जानकारी उजागर हुई है। पानीपत और सोनीपत में काफी संख्या में बड़ी औद्योगिक इकाइयां स्थित हैं।
ङ) यमुना किनारे स्थित उत्तर प्रदेश के शहरों का कचरा काफी हिस्सा बगैर शोधित हुए नदी में डाला जा रहा है। सहारनपुर, मेरठ, गाजियाबाद, नोएडा इत्यादि शहरों का गंदा पानी नदी में डाला जा रहा है। सहारनपुर मेरठ में स्थित शुगर मील के अलावा अन्य औद्योगिक इकाइयों का कचरा नदी में समाहित हो रहा है। इन शहरों का अधिकांश कचरा हिंडन नदी में डाला जा रहा है, जो कि ग्रेटर नोएडा के पास यमुना में मिल जाती है।
च) पर्यावरण विशेषज्ञों का मानना है कि यदि नदी में पानी का बहाव हो तो नदी का प्रदूषण काफी हद तक दूर हो सकता है। लेकिन यमुना में पानी का बड़े पैमाने पर अकाल है। बरसात के दिनों में नदी में बाढ़ की स्थिति हो जाती है, लेकिन बरसात खत्म होते ही नदी सूख जाती है। अमूमन नदी की यह स्थिति दिल्ली से 230 किलोमीटर ऊपर हथनीकुंड बैराज के पास से शुरू हो जाती है। बैराज के पास नदी का काफी हिस्सा पानी सिंचाई के लिए पड़ोसी राज्यों में चला जाता है।
अतः इस विश्लेषण के आधार पर हम यह समझ सकते हैं I कि यमुना जैसी जीवन दायिनी नदियों के प्रति हम और हमारा समाज एवं सरकारें किस प्रकार से लापरवाही बरत रहीं हैं अथवा रहे हैं I मानव जीवन को बचाने के जल संरक्षण और विशेषकर अपनी नदियों को बचाने और उन्हें जीवित करने के कार्य पर लग जाना चाहिए I इसके लिए पर्याप्त जन सहभागिता बहुत जरुरी है I आइये ! हम सभी मिलकर यमुना सहित देश की समस्त नदियों के संरक्षण के लिए मिलकर कार्य करें, उनकी अविरलता बनाये रखें
लेखक
(प्रमोद कुमार)