दीवाली और प्रदूषण: रोशनी के पर्व में पर्यावरण की चिंता

दीवाली भारत का सबसे सुंदर और रोशनी से भरा त्योहार है। यह वो दिन है जब हर घर जगमगाता है, लोग मिठाइयाँ बाँटते हैं, नए कपड़े पहनते हैं और एक-दूसरे को खुशियाँ देते हैं। यह त्योहार अच्छाई की बुराई पर जीत का प्रतीक है।

लेकिन अब दीवाली के साथ एक चिंता भी जुड़ गई है — प्रदूषण की।
जहाँ दीपों की रोशनी हमारे दिलों को खुश करती है, वहीं पटाखों का धुआँ हमारी हवा को ज़हरीला बना देता है। दिल्ली, लखनऊ, पटना, मुंबई जैसे बड़े शहरों में दीवाली के बाद हवा इतनी खराब हो जाती है कि साँस लेना मुश्किल हो जाता है। सवाल ये है — क्या हमारी खुशियाँ अब प्रकृति के लिए खतरा बन रही हैं?

दीवाली का पारंपरिक अर्थ

पुराने समय में दीवाली सादगी और प्रेम का त्योहार थी। भगवान राम के अयोध्या लौटने पर लोगों ने खुशी में मिट्टी के दीये जलाए थे। इस दिन लक्ष्मी जी और गणेश जी की पूजा भी होती है।

पहले दीवाली में लोग दीये जलाते, घर साफ करते और सबके साथ मिलकर खुशी बाँटते थे। पर अब दीवाली का रूप बदल गया है — बिजली की लाइटें, महंगे पटाखे, प्लास्टिक की सजावट और दिखावे की होड़ बढ़ गई है। यही बदलाव पर्यावरण के लिए खतरा बन रहा है।

दीवाली और वायु प्रदूषण

हर साल दीवाली के बाद हवा की गुणवत्ता बहुत गिर जाती है।
उदाहरण के लिए —

दिल्ली-एनसीआर में दीवाली के अगले दिन AQI (Air Quality Index) 500 तक पहुँच जाता है, जो “खतरनाक” श्रेणी में आता है।

पटाखों से निकलने वाला धुआँ और धूल कई दिनों तक हवा में रहता है।

इससे आँखों में जलन, खाँसी, अस्थमा और दिल की बीमारियाँ बढ़ जाती हैं।

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) की रिपोर्ट बताती है कि दीवाली के दिनों में दिल्ली की हवा में जहरीली गैसें सामान्य दिनों से 5–8 गुना बढ़ जाती हैं।

पटाखों का नुकसान

पटाखे भले ही कुछ मिनटों की खुशी दें, लेकिन नुकसान बहुत बड़ा होता है:

वायु प्रदूषण – पटाखों में मौजूद सल्फर, सीसा, नाइट्रेट जैसे रसायन हवा को ज़हरीला बना देते हैं।

ध्वनि प्रदूषण – कुछ पटाखों की आवाज़ इतनी तेज़ होती है कि कानों को नुकसान पहुँचाती है, खासकर बच्चों और बुजुर्गों को।

कचरा – दीवाली के बाद सड़कों पर कागज़ और बारूद का कचरा बिखरा रहता है जो नालियों को जाम कर देता है।

स्वास्थ्य पर असर – खाँसी, सांस की तकलीफ, सिरदर्द और नींद की समस्या आम हो जाती है।

पराली और दीवाली का मिलाजुला असर

पराली और दीवाली का मिलाजुला असर

उत्तर भारत में अक्टूबर-नवंबर में किसान पराली जलाते हैं। उसी समय दीवाली के पटाखों का धुआँ हवा में घुल जाता है।
जब ये दोनों मिलते हैं, तो हवा में इतना धुआँ भर जाता है कि सूरज तक धुंधला दिखता है। यही कारण है कि दीवाली के बाद कई दिन तक दिल्ली और आसपास स्मॉग (धुआँ + धुंध) छाया रहता है।

सरकार और अदालत के प्रयास

प्रदूषण रोकने के लिए सरकार और अदालतें कई कदम उठा रही हैं:

कई राज्यों में सिर्फ ग्रीन क्रैकर्स जलाने की अनुमति है, वो भी सीमित समय (रात 8 से 10 बजे) में।

ग्रीन क्रैकर्स सामान्य पटाखों की तुलना में 30% कम प्रदूषण फैलाते हैं।

स्कूलों और मीडिया के ज़रिए लोगों को इको-फ्रेंडली दीवाली मनाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है।

दिल्ली में प्रदूषण बढ़ने पर GRAP (Graded Response Action Plan) लागू किया जाता है ताकि स्थिति बिगड़े नहीं।

पर्यावरण-मित्र दीवाली कैसे मनाएँ

हम सब थोड़ी सी सावधानी रखकर दीवाली को खुशियों के साथ-साथ पर्यावरण के लिए भी सुरक्षित बना सकते हैं:

दीये जलाएँ, पटाखे नहीं – मिट्टी के दीये न सिर्फ सुंदर लगते हैं बल्कि कुम्हारों की रोज़ी भी बढ़ाते हैं।

ग्रीन क्रैकर्स चुनें – अगर पटाखे जलाने ही हैं, तो केवल कम प्रदूषण वाले चुनें।

स्थानीय चीज़ें खरीदें – चीनी लाइट्स की जगह भारतीय हस्तनिर्मित सजावट अपनाएँ।

सामूहिक उत्सव मनाएँ – कॉलोनी में मिलकर पूजा करें ताकि खर्च और प्रदूषण दोनों कम हों।

सफाई रखें – दीवाली के बाद कचरा सड़क या नालियों में न फेंकें।

एक पौधा लगाएँ – यह सच्ची “ग्रीन दीवाली” का प्रतीक होगा।

धर्म और पर्यावरण का संतुलन

दीवाली न मनाने की बात नहीं है — यह हमारी संस्कृति का हिस्सा है।
लेकिन असली पूजा तब है जब हम प्रकृति की रक्षा करें। अगर हम हवा और पानी को दूषित करेंगे, तो भगवान की बनाई इस सुंदर धरती का क्या होगा?

युवाओं की भूमिका

आज के युवा बदलाव ला सकते हैं —

स्कूलों में इको-फ्रेंडली दीवाली प्रतियोगिताएँ कराई जा सकती हैं।

बच्चे अपने घरों में बड़ों को समझाएँ कि कम पटाखे जलाएँ।

सोशल मीडिया पर #GreenDiwali जैसी मुहिम चलाएँ।

जब युवा आगे बढ़ते हैं, तो समाज बदलता है।

भविष्य की राह

धीरे-धीरे लोग जागरूक हो रहे हैं। अब कई परिवार बिना पटाखों के दीवाली मना रहे हैं।
बाजार में Eco-Friendly Diwali Kits भी आने लगी हैं जिनमें मिट्टी के दीये, गोबर से बने दीपक और प्राकृतिक सजावट होती है।

अगर सरकार, समाज और आम लोग मिलकर काम करें, तो दीवाली बिना प्रदूषण के भी उतनी ही सुंदर और खुशहाल हो सकती है।

निष्कर्ष:

दीवाली सिर्फ रोशनी का नहीं, संवेदना का पर्व है।
यह हमें सिखाती है कि जैसे एक दीपक अंधकार को मिटा देता है, वैसे ही हमारी छोटी-छोटी जिम्मेदारियाँ प्रदूषण के अंधेरे को मिटा सकती हैं।

तो आइए, इस बार दीवाली मनाएँ —
🌱 प्रकृति के साथ, प्रदूषण के खिलाफ।
दीप जलाएँ, दिलों को रोशन करें — पर हवा को नहीं जलाएँ।
यही होगी सच्ची और उज्जवल दीवाली! ✨

 

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